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कानपुर जैसे जबर रंगबाजी वाले शहर का स्कूली छोरा बालमुकुंद (आयुष्मान खुराना) अपने लहराते बालों की बदौलत ‘हीरो’ कहलाता है। गुरूर इतना कि आए दिन कभी अपने बिन बालों वाले टीचर का कार्टून बनाता है तो कभी दबे रंग वाली किसी लड़की की खिल्ली उड़ाता है... समय बीतता है... मुकुंद के बड़े होते-होते सारा नजारा ही बदल जाता है। पासा यूं पलटता है कि 25 साल का होने तक उसका गुरूर चूर-चूर हो जाता है... सिर से बाल ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग... गर्लफ्रेंड छोड़कर चली जाती है, स्टैंडअप कॉमेडी करता है तो लोग उसके चुटकुलों की जगह उस पर हंसते हैं। बालों की खेती की तरह उजाड़ हो रही जिंदगी की फसल को दोबारा हरा-भरा बनाने के लिए वह क्या-क्या जतन करता है और ये जतन कितने कारगर साबित होते हैं, यही है बाला की कहानी। यह कहानी मनोरंजन के कई टापुओं से होकर गुजरती है और अपने मकसद में कामयाब भी होती है।